नई दिल्ली । गेहूं और चावल के बाद देश की खाद्य सुरक्षा का पूरा दारोमदार अब पोषक मोटे अनाज पर होगा। सरकार ने इसके लिए पोषक अनाज की उत्पादकता बढ़ाने के लिए उप मिशन शुरु किया है। इसके तहत देश 14 राज्यों के दो सौ से अधिक जिलों को चिन्हित किया गया है, जहां की जलवायु मोटे अनाज की खेती के अनुकूल है। खेती के लिहाज से नजरअंदाज की जाने वाली मोटे अनाज वाली फसलों को सरकार की ओर से प्रोत्साहित किया जाएगा। इसी के मद्देनजर चालू वर्ष 2018 को पोषक अनाज वर्ष घोषित किया गया है।
केंद्र सरकार ने मोटे अनाज वाली इन फसलों के समर्थन मूल्य में पहली बार जबर्दस्त वृद्धि की घोषणा की है। इससे इसकी खेती की बुवाई का रकबा बढ़ने की संभावना है। बीते फसल वर्ष के दौरान भी मोटे अनाज की पैदावार ने रिकार्डतोड़ हुई है। 4.70 करोड़ टन का उत्पादन हुआ है। फसलों की उत्पादकता बढ़ाकर पैदावार को नई ऊंचाइयों पहुंचाने का लक्ष्य तैयार किया गया है। चिन्हित 200 से अधिक जिलों में ज्यादातर सूखाग्रस्त हैं। मोटे अनाज की खेती के लिए बहुत सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती है।
गरीबों के भोजन में आमतौर पर शामिल होने वाली इन फसलों को स्वास्थ्य की दृष्टि से बेहतर पाया गया है। जागरुकता के चलते मोटे अनाज की मांग में भी इजाफा हो रहा है। ज्वार, बाजरा, मक्का, रागी और जौ जैसी फसलों की खेती को प्रोत्साहित करने के लिए उनके उन्नतशील प्रजाति के बीज मुहैया कराये जाएंगे। हासिये पर रहने वाली ज्वार-बाजरा और सांवा-कोदो जैसी फसलों के दिन बहुरेंगे। इसके मद्देनजर फसल वर्ष 2018 को अनाज वर्ष घोषित किया गया है। स्वास्थ्य की दृष्टि से मोटे अनाज को पौष्टिक अनाज की श्रेणी में डालने से इन फसलों की मांग में तेजी से इजाफा हो रहा है।
पोषक अनाज के लिए शुरु किया गया उप मिशन की अवधि अगले दो सालों के लिए निर्धारित की गई है। इन फसलों की उपज के प्रसंस्करण की भी व्यवस्था की जाएगी, ताकि किसानों को उनकी उपज का अच्छा मूल्य प्राप्त हो सके। कृषि आयुक्त डाक्टर सुरेश मल्होत्रा का कहना है कि मोटे अनाज की उन्नतशील प्रजाति मुहैया कराने के साथ फसल की सुरक्षा पर विशेष जोर दिया जाएगा। इन फसलों के पोषक तत्वों को बनाए रखने के उपायों पर बल दिया जाएगा। जिन फसलों को सिंचाई की जरूरत होगी, उन असिंचित क्षेत्रों में स्पि्रंकलर और ड्रिप सिंचाई प्रणाली को अपनाया जाएगा। देश खेती वाली भूमि का 50 फीसद हिस्सा अभी भी असिंचित है, जहां मोटे अनाज वाली फसलें ही लगाई जाती हैं।