मथुरा: बुरे दौर से गुजर रहे बैं¨कग सेक्टर के आने वाले दिन और भी बुरे साबित हो सकते हैं। लोकसभा चुनाव में माफी की आस में किसानों ने फिर से ऋण की अदायगी बंद कर दी है। इनकी तीन से चार माह की किश्तें आनी बंद हो गई हैं। ऐसे किसानों का आंकड़ा औसतन 30-40 फीसद बताया जा रहा है। इसको लेकर बैंक अधिकारियों के पसीने छूटे हुए हैं।
अगले साल लोकसभा चुनाव आने वाले हैं। इसको लेकर किसानों में एक बार फिर से ऋण माफी की उम्मीद बंधने लगी है। उन्हें लग रहा है कि एक बार कोई पार्टी इस तरह की घोषणा करेगी। कारण इससे पहले उप्र के विधानसभा चुनाव में ऐसा हो चुका है। इसमें योगी सरकार ने लाखों किसानों का करोड़ों रुपये का कर्ज माफी किया था। अब तक यह सिलसिला चल रहा है। बैंक अधिकारियों का कहना है कि विभिन्न बैंक शाखाओं से किसानों को जो ऋण दिए गऐ थे, उन सभी ब्रांच में किश्त न आने की शिकायतें मिलने लगी हैं। किसानों से लगातार संपर्क किया जा रहा है। बड़ी मुश्किलों से ऋण न चुकाने के नुकसान बताए जा रहे हैं।
इधर पहले से ही बैं¨कग इंडस्ट्री की हालत काफी खराब है। जिले में करीब 108 करोड़ रुपये का एनपीए है। उसमें सबसे अधिक कृषि क्षेत्र में करीब 60 फीसद है। इतने हैं किसान::
लीड बैंक के आंकड़ों के मुताबिक जिले में एक लाख 76 हजार किसान हैं। इनमें से ऋण माफी की घोषणा के बाद एक लाख आठ हजार किसानों का डाटा पोर्टल पर पहुंचा था। इनमें अब तक 62 हजार से अधिक किसानों के खाते में पैसा आ चुके हैं। ऋण माफी योजना के तहत केवल लघु और सीमांत किसानों को ही शामिल किया गया था।
अधिकारियों का कहना है कि सरकार भले वोट बैंक के लिए ऋण माफी की घोषणा कर देती हो। मगर, इससे जानबूझकर न चुकाने वाले किसानों को ऋण माफी के बाद पैसा अदा नहीं करना पड़ता है, लेकिन इससे सही समय पर ऋण चुकाने वाले अन्य किसान खुद ठगा हुआ महसूस करते हैं। ऐसे में वे भी किश्त देने में आनाकानी करने लगता है। टॉक:
कुछ बैंक शाखाओं से ऐसी शिकायतें मिलने लगी हैं कि कई किसानों ने किश्तें अदा करनी बंद कर दी हैं। उन्हें समझाया जा रहा है कि ऋण न चुकाने से नुकसान हो सकता है।Þ
अनिल गुप्ता, अग्रणी जिला प्रबंधक लीड बैंक
इस तरह की छूट से लोगों में ऋण चुकाने की अनियमितताएं बढ़ती जा रही हैं। इससे बैंक का एनपीए, तो बढ़ता ही है साथ ही उनका भी सिबिल खराब होता है।Þ
चितेश कुमार, वरिष्ठ प्रबंधक ¨सडीकेट बैंक