Nov 19, 2018
परसदा गांव के रहने वाले 65 साल के किसान रुपन चंद्राकर को आप दूर से ही पहचान सकते हैं. रुपन चंद्राकर अपने सिर पर हमेशा एक कफ़न की पगड़ी पहने रहते हैं.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में 22 सालों से भी अधिक समय तक सक्रिय रहे रुपन चंद्राकर ने चार साल पहले किसानों के हक़ के लिये सिर पर कफ़न बांधा था, जो अब उनके पहनावे का हिस्सा हो गया है.
उनका दावा है कि इस कफ़न के कारण उन्हें लगातार लड़ते रहने की प्रेरणा मिलती है और अब किसी से डर नहीं लगता.
रुपन चंद्राकर कहते हैं, “राज्य में भी हमारी सरकार है और केंद्र में भी. लेकिन कहीं किसानों की सुनवाई नहीं हुई. छत्तीसगढ़ में किसान को बाध्य किया जा रहा है कि वह हथियार उठा ले, माओवादी बन जाए. लेकिन हम जैसे लोग, जिनकी आस्था हिंसा में नहीं है, उन्होंने लोकतांत्रिक तरीक़े से लड़ने का ज़िम्मा लिया है.”
रुपन चंद्राकर रायपुर के उन हज़ारों किसानों के नेता हैं, जो सरकारी उदासीनता के शिकार हैं. आसपास के गांवों के किसान मानते हैं कि रुपन चंद्राकर ही हैं, जो किसानों की हक़ की लड़ाई लड़ रहे हैं.
रुपन चंद्राकर कहते हैं, “हमने तो गांव की समस्या को लेकर इस बार विधानसभा चुनाव के बहिष्कार करने की सोची थी. आख़िर बदहाल और परेशान किसान क्यों वोट करे? किसानों और ग़रीबों की हालत देखनी है तो राज्य सरकार की नई राजधानी और हमारे गांव की हालत आपको देखनी चाहिए.”
चंद्राकर के दावे में अतिशयोक्ति भी नहीं है.