किसानों को सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से फरसाबहार ब्लॉक के कोनपारा क्षेत्र में कटंगमुड़ा डेम का निर्माण किया गया था, पर करीब 14 सालों से इस डेम का गेट टूट चुका है। नहरें भी टूटी-फूटी हैं। इसकी मरम्मत विभाग द्वारा नहीं कराई गई है। इसके चलते चार गांव कोनपारा, बरटोली, सरईटोला और चट्टीडांड़ के सैकड़ों किसान इस वर्ष अपनी फसल नहीं बचा पाए। जिन फसल को किसानों ने बड़ी मेहनत से अच्छी पैदावार की उम्मीद के साथ लगाया था वह भी अब पानी की कमी के कारण पूरी तरह से बर्बाद हो चुकी है।
धान में समय पर बालियां नहीं फूट पाई और सूखे खेत में पड़ी-पड़ी फसल अब सूख चुकी है। ऐसी दशा में किसानों ने अब अपनी खेतों में मवेशियों को चरने के लिए छोड़ दिया है। ताकि इन फसलों से कम से कम मवेशी अपना पेट भर सके। जब डेम व नहर का निर्माण हो रहा था, तब किसानों ने खुशी-खुशी अपनी कृषि भूमि भी इसके लिए दे दी थी। निर्माण के बाद विभाग द्वारा डेम व नहर का ठीक से मेंटनेंस किया गया। यहां के किसानों ने फसल लगाकर भरपूर लाभ कमाया। पर बाद में विभाग द्वारा उचित देखरेख के अभाव में यहां के पानी का किसानों को सही लाभ नहीं मिला। किसानों का कहना है कि 30 वर्षों तक यह डेम ठीक रहा। पर 2003-04 से तत्कालिन अधिकारियों के अनदेखी का शिकार होने लगा। जिससे डेमों के गेट टू गए और नहर भी जर्जर हो गई। जिससे नहरों के माध्यम से खेतों तक पानी नहीं पहुंच पाता।
मेहनत से लगाई गई फसल में मवेशी छोड़कर उसे चरता हुआ देखते मजबूर किसान
डेम की गेट टूटने से सब्जी लगाना छह साल पहले किया बंद
सब्जियों का उत्पादन किसानों ने 6 साल पहले ही बंद कर दिया है। डेम के गेट व नहर की मरम्मत नहीं होने पर वे साग-सब्जियों की फसल नहीं ले पा रहे हैं। 2009 में ली गई अंतिम फसल के समय पानी की समस्या से किसानों को काफी नुकसान होने की आशंका थी, जिससे किसानों द्वारा गुहार लगाए जाने के बाद सिंचाई विभाग द्वारा डीजल पंप की व्यवस्था कर किसी तरह उनकी फसलों तक पानी पहुंचाने की व्यवस्था कर उन्हें नुकसान झेलने से बचाया था। पर इसके बाद यंहा का समुचित व्यवस्था में किसी ने ध्यान नहीं दिया और इस वर्ष धान की फसल बचाने के लिए भी किसानों को पानी नहीं मिल सका।
डेम से मिलेगा पानी इस आस से किसानों ने दी थी जमीन
डेम के निर्माण में अनेक ग्रामीणों के खेत डूबान में आए। जिसे ग्रामीणों ने दोहरी फसल मिलने के आस से सहजता से अपनी सहमति दे दी थी। जहां कुछ वर्षों तक तो किसानों को इसका लाभ भी मिला। जिससे उन्होंने खरीफ के साथ-साथ रबी फसल का भी उत्पादन लिया, पर बीते 15 सालों से इन्हें किसी भी सीजन में सिंचाई का लाभ नहीं मिल पा रहा है। तब से किसान संबंधित अधिकारियों एवं जनप्रतिनिधियों के समक्ष इसकी मरम्मत के लिए लगातार मांग करते रहे हैं। इसके बावजूद आश्वासन के सिवाय अब तक कुछ भी नहीं मिल पाया है। किसानों का हर साल मौसम की मार झेलनी पड़ रही है।
नहर टूटने से 15 साल से 121 हेक्टेयर क्षेत्र में नहीं हो रही सिंचाई
यहां के राजाबांध से खेतों में पानी की सप्लाई करने वाले नहर इतना जर्जर हो गया है कि किसानों के खेत में एक बूंद पानी नहीं पहुंच रहा है। लगभग तीन दशक पूर्व बने इस डेम एवं नहर के निर्माण के बाद अब तक किसी ने भी मरम्मत के लिए ध्यान नहीं दिया। शुरु वर्षों में खरीफ फसल के 121 हेक्टेयर के क्षेत्र में सिंचाई किया जा रहा था। पर बांध के गेट का दरवाजा ठीक नहीं होने एवं नहर के टूट-फूट के कारण एक एकड़ में भी किसानों को सिंचाई का लाभ नहीं मिल पा रहा है। मांग उठाने पर विभाग द्वारा डेम की हल्की मरम्मत कर दी जाती रही, पर फिर वही स्थिति हो जाती। 2009-10 के बाद डेम से पानी बहने से किसानों को लाभ नहीं मिल रहा।