साल दर साल उर्वरकों के अत्यधिक इस्तेमाल से बंजर होती जमीन, प्रदूषित होते जमीनी पानी के स्त्रोत, मनुष्य और जानवर की बिगडती सेहत, प्राकृतिक संसाधनों पर बढ़ता बोझ, घटती किसानों की आय, ये सभी संकेत हैं हमारे लिए कि हम अपनी खेती की पद्धति में बदलाव लायें, अन्यथा परिणाम और भी भयावह हो सकते हैं l वैज्ञानिकों द्वारा अप्राकृतिक उर्वरकों की जगह लेने के लिए केंचुआ खाद का विकल्प बहुत लम्बे वक़्त से मौजूद है l इस विकल्प की स्वीकार्यता2 वजहों से नहीं बढ़ पा रही है l एक, किसानों को अधूरी या जानकारी ही न होना, दूसरी इसका कुप्रचार जो की उन लोगों की वजह से होता है जो ऐसे प्रोजेक्ट अपना तो लेते हैं मगर अधूरी देखभाल एवं वैज्ञानिक तरीके से रखरखाव नहीं करते और यही उनकी असफलता का कारण बनता है l सरकारों का दायित्व है की वह ऐसी पद्धतियों को प्रोत्साहित करने के लिए विस्तार, ट्रेनिंग एवं शोध में तत्पर भाव से काम करे l
कोई भी व्यवसाय तभी अपनाया जायेगा जब वह किसान की आय को बढाए और केंचुआ खाद की बढती खपत इसका व्यावसायिक स्तर पर उत्पादन करने वालों के लिए आय वर्धक का काम बखूबी कर रही हैl केंचुआ खाद बनाने की विधि के अलावा जरूरी है उसमें होने वाले खर्चे और इससे होनेवाले मुनाफे की सही जानकारीl 1 एकड़ में 200 टन प्रति वर्ष केंचुआ खाद बनाने के फार्म में होने वाली आय और व्यय का विवरण सारिणी 1 और 2 में दिया गया है l