देर तक वर्षा, खेतों में अधिक मात्रा में नमी की वजह से बोवनी करीब 15 दिन देरी से

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छतरपुर Oct 22, 2019

कुछ राज्यों में मानसून ने अभी तक विदाई नहीं ली है। कुछ राज्यों में हाल ही में विदा हुआ है। खरीफ फसल की कटाई चल रही है। जहां कटाई हो चुकी है, वहां के अनेक खेतों में नमी अधिक मात्रा में है। अत: बोवनी कम से कम 15 दिन देरी से हो सकेगी। उड़द के नए लायसेंस देने पर तेजी पर ब्रेक लग सकता है अन्यथा बड़ी तेजी को रोकना कठिन होगा। मूंग की फसल आती रहती है। नैफेड टेंडर कर रहा है, और राजस्थान में फसल आ रही है। दीपावली बाद आवक और अधिक बढ़ने की आशा रखी जाती है।

कई खेत फिर गीले हो गए

जानकार क्षेत्रों के अनुसार पता नहीं मानसून अभी तक विदाई क्यों नहीं ले रहा है। यह समझ से परे हैं। मप्र, उप्र और महाराष्ट्र के कुछ क्षेत्रों में अभी भी वर्षा हो रही है। पिछले दिनों हुई वर्षा से खेत सूखे ही नहीं थे, फिर से गीले हो गए। कुछ क्षेत्रों में तो अभी खरीफ की कटाई का कार्य चल रहा है। इससे अब पक्का विश्वास हो गया है कि रबी की बोवनी में कम से कम 15 दिन की देरी तो हो जाएगी। आगामी फसलें इतने ही दिन देरी से आएगी। रबी सीजन में मौसम कैसा रहता है, यह अनुमान लगाना तो कठिन है किंतु आम धारणा यह बन रही है कि आगामी महीनों में ठंड का प्रभाव अधिक रह गया है। रबी सीजन में सामान्य ठंड से ही फसलें पकती हैं किंतु सामान्य काफी अधिक पड़ने पर फसलों को नुकसानी से भी इंकार नहीं किया जा सकता है। जैसी खरीफ में अति वर्षा ने फसलों को नुकसान पहुंचाया है, कहीं अधिक एवं अधिक मावठे रबी फसलों पर कहर न बरपा दें। यह आशंका भी रखी जाने लगी है।

उड़द में मंदी के संयोग कम

उड़द, मूंग के भाव धीमी गति से आगे बढ़ते जा रहे हैं। मूंग की फसल किसी न किसी राज्य में आती रहने से स्टॉकिस्ट अधिक समय तक संभालकर नहीं रख सकते हैं। एक समय सीमा के बाद बेचना ही पड़ता है। इसके अलावा राजस्थान में नैफेड की बेचवाली जारी है। इससे भी तेजी पर ब्रेक लगता रहता है। उड़द की स्थिति कुछ अलग है। उड़द का कुल आयात जितना होना था, वह हो चुका। उत्पादक मंडियों में आवक हो रही है। अगले माह तक कुल कितनी आवक होती है, उसी पर तेजी की चाल निर्भर करेगी। विधानसभा चुनाव संपन्न होने के बाद आचार संहिता समाप्त हो जाएगी। देखना यह है कि डीजीएफटी उड़द आयात के लिए नए लायसेंस जारी करता है, अथवा नहीं। यदि उड़द आयात के लायसेंस जारी नहीं किए गए तो आम धारणा उड़द में अच्छी एवं पक्की मानी जा रही है। भावों का स्तर क्या होगा, यह तत्कालीन परिस्थितियों पर निर्भर करेगा।

छोटे माल में मांग अधिक

डबल डॉलर काबुली चने में तेजी के एक नहीं अनेक कारण हैं। दीपावली पूर्व बारीक माल में मांग निकलती है। 58X60 क्वालिटी में ही तेजी आई है। मोटा माल तो इसकी वजह से आगे बढ़ गया। मुंबई में रसिया के माल में कोई भी तेजी नहीं आई है।कनाड़ा के माल में 100 से 50 रुपए की तेजी आई है, जहां तक कनाड़ा में डॉलर की फसल खराब होने की चर्चा है। आयातकों का कहना है कि डॉलर एवं मसूर की फसल आने के पूर्व वहां के निर्यातक फसल खराब होने अथवा कम उतरने की चर्चा हमेशा चलाते रहे। इनके इस कथन पर आयातक तनिक भी विश्वास नहीं करते हैं।

रसिया में फसल अच्छी है। रसिया से आयात शुरु हो गया है। नवंबर माह में करीब 10 हजार टन बारीक काबुली चने का आयात होने की संभावना व्यक्त की जा रही है। बारीक काबुली देश में बेसन मिलों में जा रहा है।

मोटे माल का बड़ा स्टॉक

मप्र के बड़े स्टॉकिस्टों ने पिछले दिनों हवा उड़ा दी थी कि आगामी फसल एक डेढ़ माह देरी से आएगी। बोवनी भी पता कितनी होगी। सर्वाधिक उल्लेखनीय यह है कि मोटे माल में निर्यात मांग कमजोर है। एक तरह से मोटा माल जाम पड़ा है। बारीक माल में दीपावली बाद मांग कमजोर पड़ जाएगी। वर्तमान में किसान वर्ग सोयाबीन की कटाई एवं उसकी बिक्री में लगे हुए हैं। अत: डॉलर की आवक कम हो रही है। हालांकि वर्तमान आवक को कम तो नहीं कह सकते हैं किंतु तेजी के सामने आवक बताई जा रही है। रोजाना 20-25 हजार बोरी की आधिकतम बिक्री हो रही होगी। मोटे माल का इस बार इतना अधिक सटॉक बताया जा रहा है कि नई फसल 50 प्रतिशत भी आएगी फिर भी माल की आपूर्ति सुगम बनीं रहेगी।

रबी फसलों के लिए सिंचाई जरूरी

रबी की फसलें सिंचाई पर निर्भर करती है। इस बार कुएं, बावड़ी, जलाशयों में पानी की कमी नहीं है। इसके साथ ही जमीन में भी पानी का स्तर बढ़ गया है। अत: रबी में बोवनी का रकबा गत वर्षों की तुलना में काफी अधिक रहेगा। आम धारणा है कि पानी की उपलब्धता की वजह से खेत के प्रत्येक भाग में बोवनी कर की जा सकती है। रबी में गेहूं, चना, मसूर, मटर, सरसों की अधिक मात्रा में होती है। किसान वर्ग किस फसल को महत्व देते हैं, यह देखना है। सामान्यत: मप्र में गेहूं, चना और मसूर की बोवनी अधिक होती है और कुछ क्षेत्रों में सरसों/ रायडा की बोवनी भी की जाती है। किसानों को गेहूं की कीमत अच्छी उपज रही है, मप्र के गेहूं में प्रदेश के बाहर की भी जोरदार मांग रहती है। शरबती (चंदौसी) गेहूं के भाव तो अच्छे मिलते ही है। अत: गेहूं की बोवनी का रकबा बढ़ जाए तो आश्चर्य नहीं करना चाहिए। हालांकि आम धारणा यह भी है कि एक-दो पानी देने पर चने की पैदावार आसानी से हो जाएगी, वैसे स्टॉकिस्टों किसानों को चने के जितने आकर्षक भाव मिलने थे, अभी तक तो नहीं मिल सके हैं।

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