होशंगाबाद Nov 15, 2018
कृषि उपज मंडी में कभी सोने जैसी पीली चमक बिखेरने वाला सोयाबीन अब मंडी में नजर नहीं आता है। वर्ष 2013-14 में छह लाख 18 हजार 951 क्विंटल सोयाबीन आया था जबकि वर्ष 2017-18 में महज 9 हजार 496 क्विंटल सोयाबीन आया है। कृषि उपज मंडी समिति के सचिव नरेश परमार ने बताया पिछले वर्ष तो और कम सोयाबीन आया था। स्थानीय किसानों का कहना है कि सोयाबीन में आने वाली लागत और बीमारियों से हुए नुकसान के कारण किसानों का सोयाबीन से मोह भंग हो गया है। साथ ही बारिश से बने हालातों ने भी किसानों को सोयाबीन से दूर रहने पर मजबूर कर दिया है। ग्राम टड़ा के किसान मलखान पटेल ने बताया सोयाबीन में पीला मोजेक नाम का रोग हुआ करता था जिसका कोई इलाज किसानों को नहीं मिला। कई प्रकार की दवाओं का उपयोग करने के बाद भी इस रोग पर कोई कंट्रोल नहीं हुआ और किसानों को बड़ी मात्रा में आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा। पीला मोजेक के साथ ही और भी कई बीमारियां सामने आई है। मलखान पटेल ने कहा कि पीला मोजेक की परेशानी उड़द की फसल में भी थी लेकिन उड़द का जो नया बीज आया उसमें पीला मोजेक से लड़ने की क्षमता होने के कारण लोगों ने उड़द बोना बंद नहीं किया। सोयाबीन के बीज में सुधार नहीं हुआ और फसल पीला मोजेक का शिकार होती रही नतीजा किसानों ने सोयाबीन से तौबा कर ली।
लाइलाज है पीला मोजेक
कृषि विभाग के एसडीओ एसएस कौरव ने बताया सोयाबीन खत्म होने के दो कारण हैं। पहला मुख्य कारण पीला मोजेक है इसका कोई इलाज नहीं मिला। ये एक दिन में ही पूरे खेत की फसल को नष्ट कर देता है। दूसरा कारण जलवायु का साथ ना देना रहा। सोयाबीन को जैसा मौसम चाहिए वैसा मौसम नहीं मिल रहा जिसके चलते किसानो का रुझान कम हुआ है।