पति | Sep 25, 2018
इस बार बेहरी के कुछ किसानों ने खरीफ सीजन की फसलों के साथ-साथ सफेद मूसली की खेती करना भी शुरू की है। किसान सूरजसिंह पाटीदार, विष्णु पाटीदार सहित कुछ किसानों ने सोयाबीन फसल के साथ करीब एक से दो बीघे जमीन में सफेद मूसली की बोवनी की। क्षेत्र में पहली बार सफेद मूसली की खेती देख अन्य किसान इसे पैदा करने की विधि को जानने के लिए खेतों पर पहुंच रहे हैं। किसानों का कहना, अगर इस बार उत्पादन अच्छा रहा और लाभ मिला तो अगली बार इस फसल का रकबा बढ़ा कर इसकी खेती करेंगे।
दरअसल सफेद मूसली की फसल 6 से 8 माह में आती है। बारिश के सीजन में लगाकर फरवरी-मार्च में खोद लिया जाता है। सफेद मूसली की कई किस्में पाई जाती हैं। इसे धोली मूसली के नाम से भी जाना जाता है। उत्पादन और गुणवत्ता की दृष्टि से एमडीबी 13 व एमडीबी 14 किस्म अच्छी बताई जाती है। फसल में नियमित वर्षा होने से सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती है। फसल को उखाड़ने के पूर्व तक खेतों में नमी होना चाहिए। जल भराव और आवश्यकता से अधिक सिंचाई करने से जड़ में गलन का रोग हो जाता है। बीज के उपयोग के लिए गीली सफेद मूसली का उपयोग किया जाता है। किसानों ने गीली मूसली 25 हजार रु. प्रति क्विंटल के भाव से खरीदी है। फसल का उत्पादन 1 बीघे में 20 से 24 क्विंटल का होता है, जो सूखने के बाद इसका औसत 1 बीघे में 4 क्विंटल के करीब होता है। जिसकी बाजार में आज की कीमत करीब 1 लाख रुपए प्रति क्विंटल है।
खेत मालिक से फसल से संबंधित जानकारी लेता अन्य किसान।
कई रोग की निवारक औषधि है सफेद मूसली
जानकारों की मानें तो सफेद मूसली एक औषधीय पौधा है। इसका उपयोग खांसी, अस्थमा, बवासीर, चर्मरोग, पीलिया आदि में किया जाता है।
ऑनलाइन पंजीयन करने पर अनुदान भी मिलता है
वरिष्ठ उद्यान विकास अधिकारी राकेश सोलंकी ने बताया औषधि क्षेत्र विस्तार योजना के तहत सफेद मूसली की खेती पर लागत के अनुमान से 30 से 50 प्रतिशत प्रति हैक्टेयर के हिसाब से अनुदान प्राप्त करने के लिए ऑनलाइन पंजीयन करवाना होता है। वर्तमान में पंजीयन होना बंद हो गए हैं। सफेद मूसली की कोई प्रमुख मंडी नहीं, आड़तियों के माध्यम से इसकी खरीदी-बिक्री होती है। एक किसान दूसरे किसान से भी खरीद सकता है।